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वृक्षारण्य: वन बचाओ, जीवन बचाओ !

"वृक्षारण्य" अर्थात् "वृक्षों का जंगल"। वृक्षारण्य परियोजना “मोरल वैल्यूज इंडिया फाउंडेशन” की एक पर्यावरणीय संरक्षण पहल है, जिसका उद्देश्य वृक्षारोपण के माध्यम से हरे-भरे जंगलों का निर्माण करना है। इस परियोजना के माध्यम से विशेषकर उन क्षेत्रों में कार्य करना है, जहाँ विभिन्न कारणों से हरित क्षेत्र समाप्त हो चुके हैं या किये जा रहे हैं, वहां पुनः वृक्षारोपण कर प्रकृति को हम अपने इस वृक्षारण्य परियोजना के माध्यम से यथारूप में लाने का सार्थक प्रयास करेंगे।

उद्देश्य (Objectives)

“माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु॥”
इस वैदिक उक्ति के अनुसार पृथ्वी हमारी माता है और हम सब इसके पुत्र हैं। ‘पर्जन्य’ अर्थात् मेघ हमारे पिता हैं। और ये दोनों मिल कर हमारा पालन करते हैं। इसलिए हमारी इस वृक्षारण्य परियोजना का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण और वैश्विक (Global) संतुलन को बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करना है। हमारा उद्देश्य एक संगठित वृक्षारोपण अभियान चलाकर पर्यावरण को संरक्षित करना है। साथ ही वृक्षों से मिलने वाले फल, फूल और पत्तियाँ आदि, अनेक मनुष्यों और जीव-जंतुओं के भोजन और आवास आदि का एक स्थायी, संतुलित और सुरक्षित स्रोत बन सके। जिससे पेड़ न केवल जैव विविधता को सहारा देंगे, बल्कि जलवायु संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

परियोजना क्षेत्र का परिचय

हम भारत के गाँव, वन, पहाड़ी या हिमालीय क्षेत्रों में इस योजना को क्रियान्वित करेंगे। हमारा भारत देश सदैव से अपनी प्राकृतिक सुंदरता और विविधता के लिए प्रसिद्ध रहा है, वर्तमान में विभिन्न कारणों से इन क्षेत्रों में वृक्षों की कमी और जैव-विविधता का संकट गहराता जा रहा है। इसलिए हमारा प्रयास है कि भारत वर्ष की प्राकृतिक सुंदरता और विविधता को अक्षुण्ण बनाये रखना । इसलिए हमारा प्रयास है कि भारत की इस अनुपम प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को संरक्षित रखा जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी समृद्ध विरासत को पाकर गौरवान्वित अनुभव कर सकें।
पहाड़ी क्षेत्रों में जैव-विविधता का महत्त्व
टिहरी गढ़वाल और पौड़ी जिले की जलवायु ठंडी और आर्द्र है। इन जिलों में गर्मियों के समय तापमान मध्यम रहता है, जबकि सर्दियों में तापमान कम हो जाता है और कहीं-कहीं बर्फबारी भी होती है। इस जिले में वनस्पति और जैव विविधता बहुत अधिक है। इन जिलों में विभिन्न प्रकार के वृक्ष, पौधे और जानवर पाए जाते हैं। जिले की आर्थिक गतिविधियों में कृषि, पशुपालन और पर्यटन प्रमुख हैं। परन्तु इस समय इन क्षेत्रों में निरन्तर हो रही वृक्षों की कमी से जंगल समाप्त होते जा रहे हैं, जिससे यहाँ के सभी प्रकार के जीव-जन्तु, पशु-पक्षी आदि को पर्याप्त भोजन, आवास उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। हमारा प्रयास है कि हम इन क्षेत्रों में इस प्रकार से वृक्षारोपण करें, जिससे सभी जीवों को आवश्यक भोजन और संरक्षण प्राप्त हो, जिससे यहाँ के पर्यटन और जैव-विविधता को बढ़ावा मिल सके।

योजना (Planning)

वृक्षारण्य योजना के अंतर्गत हम अधिक से अधिक वृक्ष लगाने के लिए विभिन्न प्रकार की भूमि का उपयोग करेंगे। जैसे: ग्राम पंचायत की रिक्त भूमि, वन विभाग की भूमि, सरकारी भूमि, ग्रामीण लोगों की भूमि तथा आदिवासी समुदाय की भूमि पर वृक्ष लगाने का लक्ष्य है। जिसकी प्रक्रिया निम्न प्रकार से होगी...
● सरकारी या वन विभाग की भूमि को लीज पर लेकर वृक्षारोपण करना।
● आर्थिक रूप से अक्षम ग्रामीण लोगों की भूमि पर बहुउपयोगी वृक्षों को लगाना।
● जो व्यक्ति पर्यावरण से प्रेम करते हैं और अपने निजी भूमि या खेत में वृक्ष लगवाना चाहते हैं, उन्हें हम निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराएँगे। हालांकि, उन पौधों की देखभाल, सुरक्षा और सिंचाई की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की स्वयं की होगी।
● किन्हीं कारणों से जिन किसानों ने खेती करना छोड़ दिया है, या जो आर्थिक रूप से अक्षम होने के कारण अपनी पारंपरिक खेती नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें खेती के लिए प्रोत्साहित करना।
यही कारण है कि हमारा उद्देश्य न केवल पर्यावरण को हरा-भरा बनाना है, बल्कि जन-सहभागिता के माध्यम से प्रकृति से जुड़ाव को भी बढ़ावा देना है।

वृक्षारण्य प्रोजेक्ट के प्रमुख स्तम्भ:

स्तम्भ विवरण
बीज बैंक स्थानीय, देसी बीजों का संरक्षण व प्रसार
नर्सरी स्वस्थ, जैविक पौधों की तैयारी
गौ पालन गोबर, गोमूत्र से जैविक खाद और पंचगव्य
यज्ञ (अग्निहोत्र) वायुमंडलीय शुद्धि और ऊर्जा संतुलन
औषधि वाटिका जड़ी-बूटी आधारित ग्राम स्वास्थ्य
पारंपरिक खेती देसी अन्न, दालें और जैविक कृषि

वृक्षारण्य परियोजना के लाभ:

वृक्षारण्य परियोजना का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता संवर्धन और जलवायु संतुलन को सुनिश्चित करना है। यह परियोजना न केवल प्राकृतिक संसाधनों की पुनर्स्थापना करेगी, बल्कि समाज, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था को भी दीर्घकालिक और सकारात्मक लाभ प्रदान करेगी। इसके कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
"वृक्षारोपण – प्रकृति, प्राणी और परिश्रम का पुनर्जागरण"
वृक्षारोपण जीवन के हर स्तर को सशक्त बनाने की एक समग्र प्रक्रिया है। इस अभियान के अंतर्गत ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को वनों की देखभाल, पौधारोपण और संरक्षण कार्यों में प्रत्यक्ष रोजगार देकर उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया जाएगा। साथ ही, यह पहल जीव-जंतुओं के लिए भोजन (फल, पत्ते, बीज) और सुरक्षित आवास (घोंसले, आश्रय) का आधार बनकर जैव विविधता को भी संरक्षित करेगी।
वृक्ष वायु को शुद्ध करते हैं, तापमान को नियंत्रित रखते हैं, भूमि कटाव को रोकते हैं और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त, वृक्षों द्वारा उत्पन्न ऑक्सीजन और हानिकारक गैसों के अवशोषण से मानव जीवन को ऊर्जा और स्वच्छ वायु प्राप्त होती है। अतः यह अभियान प्रकृति, प्राणी और मानव समाज– तीनों के सामूहिक कल्याण का सशक्त माध्यम बनता है। वृक्षारण्य परियोजना के माध्यम से विशेषकर बच्चों और युवाओं में पर्यावरण के प्रति जागरूकता, जवाबदेही और संवेदनशीलता को प्रोत्साहित किया जाएगा। ग्राम पंचायतों, स्कूलों, स्वयंसेवी संस्थाओं और स्थानीय नागरिकों को इस परियोजना में सम्मिलित किया जायेगा। वृक्षारोपण से पहले जागरूकता अभियान प्रभावी ढंग से चलाया जायेगा।

ग्रामीण और स्थानीय परिवारों द्वारा वृक्षारोपण में भागेदारी:

वृक्षारण्य योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में वृक्षारोपण करने का लक्ष्य है, जिसका क्रियान्वयन निम्नलिखित है:
● गाँवों का चयन कर प्रत्येक गाँव में वृक्षों को लगाया जायेगा। प्रत्येक गाँव से 500 वृक्षों पर एक परिवार को नियुक्त किया जायेगा, जो वृक्षों की रक्षा और देखरेख करेगा।
● साथ ही प्रत्येक परिवार को एक-एक गाय देंगे, जिसका पालन पोषण उनके द्वारा किया जायेगा तथा उससे प्राप्त गोमय (खाद, गोबर आदि) को वृक्षों के विकास में उपयोग किया जाएगा। गाय से प्राप्त दूध और घी को संस्था द्वारा उनसे क्रय किया जायेगा जो उनके आर्थिक जीवन में और अधिक अहम भूमिका का निर्वहन कर सकता है।

ग्रामीण परिवारों को रोजगार देने के अन्य विकल्प:

गौवृक्ष प्रकल्प (गौ संवर्धन योजना):
गौवृक्ष प्रकल्प (गौ संवर्धन योजना) एक आत्मनिर्भरता केंद्रित पहल है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को गौपालन के माध्यम से आर्थिक, पोषण और सांस्कृतिक समृद्धि की ओर अग्रसर करना है। इस योजना के अंतर्गत चयनित परिवारों को संस्था द्वारा दूध देने वाली गाय निःशुल्क प्रदान की जाती है, जिनका पालन-पोषण संबंधित परिवार द्वारा किया जाएगा। गाय से प्राप्त दूध, घी, गोमूत्र आदि उत्पादों को संस्था निश्चित मूल्य पर नियमित रूप से खरीदेगी, जिससे परिवारों को स्थायी आय का स्रोत प्राप्त होगा। इस अभियान के माध्यम से न केवल स्वदेशी गौ नस्लों का संरक्षण होगा, बल्कि ग्राम्य जीवन में पोषण, पर्यावरणीय संतुलन और आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना भी सुनिश्चित होगी। “गौवृक्ष प्रकल्प” वास्तव में गाय से घर, गाँव और आत्मा – तीनों का कल्याण करने वाली सशक्त धारा सिद्ध होगी।
जड़ी ग्राम (औषधि वाटिका):
यह एक समग्र ग्राम-स्वास्थ्य एवं आजीविका उन्नयन योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों के माध्यम से सशक्त बनाना है। इस योजना के अंतर्गत चयनित परिवारों को वित्तीय सहायता दी जाएगी, ताकि वे अपने खेत या आंगन में औषधीय पौधों की जैविक खेती कर सकें। इन परिवारों द्वारा उत्पादित जड़ी-बूटियाँ — जैसे तुलसी, अश्वगंधा, गिलोय, सफेद मूसली, आंवला आदि को संस्था द्वारा तय मूल्य पर खरीदा जाएगा। इससे ग्रामीणों को नियमित आय, पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण, और स्थानीय स्तर पर औषधीय स्वावलंबन का अवसर प्राप्त होगा। साथ ही, यह परियोजना महिलाओं और युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान कर ग्राम्य अर्थव्यवस्था को सशक्त करेगी। "जड़ी ग्राम" केवल एक योजना नहीं, बल्कि प्रकृति, परंपरा और प्रगति का संगम है – जो गाँवों को स्वास्थ्य और हरियाली की नई दिशा देगी।
कृषिधारा– हिमधरा से पोषण की ओर:
पारंपरिक खेती उत्तराखंड के पर्वतीय जीवन की धड़कन है: जो प्रकृति से संवाद बनाते हुए ग्रामीण समाज को आजीविका, पोषण और आत्मनिर्भरता की मजबूत नींव देती है। जिसका उद्देश्य हिमालयी क्षेत्रों में पारंपरिक खेती को पुनर्जीवित कर ग्राम्य जीवन को आत्मनिर्भर, पोषित और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाना है। इस योजना के अंतर्गत भी चयनित परिवारों को वित्तीय सहायता दी जाएगी, ताकि वे अपने खेतों में रागी, झंगोरा, मडुवा, गहत, भट्ट जैसे देसी अन्नों और फसलों की जैविक पद्धति से खेती कर सकें। इन परिवारों द्वारा उत्पादित अन्न, दालें व अन्य कृषि उत्पाद संस्था द्वारा सुनिश्चित मूल्य पर खरीदे जाएंगे, जिससे उन्हें एक स्थायी आय का स्रोत प्राप्त होगा। यह योजना न केवल परंपरागत बीजों और कृषि विधियों का संरक्षण करेगी, बल्कि मिट्टी, जल और जीवन की शुद्धता को भी बनाए रखती है। "कृषिधारा" वास्तव में हिमालय की निर्मल धारा से बहकर पोषण, परंपरा और समृद्धि की ओर बढ़ती ग्राम्य चेतना की जीवनरेखा है।

वृक्षारोपण – प्रकृति से संवाद की प्रक्रिया:

वृक्षारोपण केवल हरियाली का विस्तार नहीं, बल्कि धरती माता से किया गया एक शांत लेकिन सशक्त संवाद है। यह संवाद जीवन के प्रत्येक रूप को पोषण देने वाला है, वृक्षारोपण केवल प्रकृति के प्रति कर्तव्य नहीं, बल्कि मानवता के भविष्य के प्रति हमारा उत्तरदायित्व है। एक बीज बोकर हम न केवल एक वृक्ष उगाते हैं, बल्कि प्राणवायु, छाया, वर्षा, खाद्य और जीवन का संचार उपलब्ध करते हैं। आज जब पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, तब वृक्षारोपण एक ऐसा सरल उपाय है जो धरती को संतुलन, शांति और स्थायित्व प्रदान कर सकता है।
वृक्षारण्य परियोजना हमारी संस्था का एक सार्थक प्रयास है, जो प्राकृतिक संरक्षण और सामाजिक विकास के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन होगा। इस प्रयास से सतत विकास (Sustainable Development) के उद्देश्यों को भी बल देगा। इसलिए अब समय रहते वृक्षारोपण को हम एक उत्सव, एक उत्तरदायित्व और एक संस्कार की तरह अपनाएं। हर एक लगाया गया पौधा भविष्य की नींव है। आइए, हम सब मिलकर धरती को फिर से हरा-भरा बनाएं — क्योंकि वृक्ष हैं, तो जीवन है। इसलिए हमारा नारा है ... “वन बचाओ-जीवन बचाओ”

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